वेधशाला
ज्योतिष शास्त्र के दृष्णिकोण से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस वेधशाला का निर्माण सन् 1730 में राजा जयसिंह ने करवाया था। सन् 1923 में महाराजा माधवराव सिंधिया ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। सम्राट यंत्र, रिगंश यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र तथा भित्ति यंत्र आदि यहां के प्रमुख यंत्र हैं। खगोल अध्ययन के लिए यह स्थान अत्यंत उपयोगी है।
श्री भर्तृहरि गुफा
भर्तृहरि एक महान संस्कृत कवि थे। संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है।
गढ़कालिका के दक्षिण में भर्तृहरि गुफा स्थित है। सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भर्तृहरि की साधना-स्थली होने के कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। राज-पाट त्यागने के पश्चात उन्होंने नाथ पंथ की दीक्षा लेकर कई वर्षों तक यहां पर घनघोर योग-साधना की थी।
शिप्रा तट पर स्थित यह गुफा, बौद्ध एवं परमारकालीन स्थापत्य कला की संरचना है। इसका प्रवेश मार्ग तुलनात्मक रूप से संकरा है तथा भीतरी दक्षिणी भाग में गोपीचंदजी की प्रतिमा है। राजयोगी भर्तृहरि की धूनी के ऊपर की शिला पर हाथ के पंजे के निशान हैं। कहा जाता है कि भर्तृहरि की तपस्या से इंद्र डर गया था और उनकी तपस्या को भंग करने के लिए उसने एक शिला फेंकी जिसे भर्तृहरि ने अपना हाथ ऊपर करके वहीं रोक दिया था। अत: भर्तृहरि के हाथ का निशान इस शिला पर अंकित हो गया। किंवदंती है कि पहले इस गुफा के अंदर से ही चारों धामों तक जाने के रास्ते थे, जो आजकल बंद हैं। इस गुफा की व्यवस्था नाथपंथी साधुगण करते हैं। यहां से कुछ दूर पर नागपंथ के प्रमुख आचार्य मत्स्येन्द्रनाथजी की समाधि है। उनको पीर मछंदरनाथ भी कहते हैं।
श्री सांदीपनि आश्रम
अंकपात क्षेत्र में स्थित इस आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा और बलरामजी ने अपने गुरु श्री सांदीपनि ऋषि के सान्निध्य में रहकर गुरुकुल परंपरानुसार विद्याध्ययन कर 14 विद्याएं तथा 64 कलाएं सीखी थीं। उस काल में तक्षशिला और नालंदा की तरह उज्जैन (अवन्तिका) भी ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति का सुप्रसिद्ध केंद्र था। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण यहां स्लेट पर लिखे अंक धोकर मिटाते थे इसलिए ही इस क्षेत्र का नाम अंकपात पड़ा। श्रीमद्भागवत, महाभारत तथा कई अन्य पुराणों में यहां का वर्णन है। यहां पर स्थित कुंड में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरुजी को स्नानार्थ गोमती नदी का जल उपलब्ध करवाया था अतएव यह सरोवर गोमती कुंड कहलाया। यहां पर स्थित मंदिर में श्रीकृष्ण, बलराम तथा सुदामाजी की सुंदर मूर्तियां हैं। महर्षि सांदीपनि के वंशज अभी भी उज्जैन में निवास करते हैं तथा प्रख्यात ज्योतिर्विद के रूप में जाने जाते हैं। इसी अंकपात क्षेत्र में सिंहस्थ महाकुंभ का मेला लगता है तथा यह ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण स्थान है।