आचार्य पंडित अम्रतेष त्रिवेदी द्वारा अवंतिकापुरी उज्जैन में श्रावण महोत्सव में कालसर्प योग शांति,पार्थिव शिवलिंग व रुद्राभिषेक अनुष्ठान

[vc_custom_heading text=”ॐ अनंतम वासुकि शैषम पद्मनाभं च कंबलम
शंखपालम कर्कोटकम तक्षकं कालियं तथा
एतानि नवनामानी नागनाम च महात्मनां
सायंकाले पठेनित्यं प्रातःकाले विशेषतः

तस्य विषभयं नास्ति इति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥” font_container=”tag:h2|text_align:center” use_theme_fonts=”yes”]

[vc_custom_heading text=”कालसर्प दोष एवं निवारण विस्तार में” font_container=”tag:h1|font_size:32px|text_align:left|color:%23f15555|line_height:40px” use_theme_fonts=”yes” css=”%7B%22default%22%3A%7B%22color%22%3A%22%23f15555%22%2C%22font-size%22%3A%2232px%22%2C%22line-height%22%3A%2240px%22%7D%7D”]

ज्योतिष के आधार पर काल सर्प दो शब्दों से मिलकर बना है “काल एवं सर्प”। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार काल का अर्थ समय होता है एवं सर्प का अर्थ सांप इसे एक करके देखने पर जो अर्थ निकलकर सामने आता है वह है समय रूपी सांप। इस योग को ज्योतिषशास्त्र में अशुभ माना गया है। इस योग को अधिकांश ज्योतिषशास्त्री अत्यंत अशुभ मानते हैं परंतु इस योग के प्रति ज्योतिष के महान विद्वान पराशर एवं वराहमिहिर चुप्पी साधे हुए हैं

शास्त्रों का अध्ययन करने पर हमने पाया राहू के अधिदेवता काल अर्थात यमराज है एवं प्रत्यधि देवता सर्प है, एवं जब कुंडली में बाकी के ग्रह राहु एवं केतु के मध्य आ जाते तो इस संयोग को ही कालसर्प योग कहते है। वास्तव में प्राणी के जन्म लेते है उसकी कुंडली में ग्रहो का एक अद्भुत संयोग विद्धमान हो जाता है जो समय के अनुसार चलता रहता है, ऐसे ही ग्रहो की गति बदलते बदलते एक ऐसे क्रम में आ जाती है जिसमे सभी ग्रहों की स्थिति राहु एवं केतु के मध्य हो जाती है, इसमें राहु की तरफ सर्प का मुख होता है एवं केतु की तरफ सर्प

की पूँछ होती है ऐसा माना जाता है, इस संयोग के कारण ही व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग आ जाता है, वैसे काल सर्प का जो अर्थ ज्योतिष ने बताया है वो है ‘समय’ का सर्प के समान वक्र होना, जिसकी कुण्डली में यह योग होता है उसके जीवन में काफी उतार चढ़ाव एवं संघर्ष आता है। इस योग को अशुभ एवं विध्वंसकारी माना गया है। राहु एवं केतु ग्रह होते हुए भी ग्रह नहीं है, ऋग्वेद के अनुसार राहु केतु ग्रह नहीं हैं बल्कि असुर हैं, राहु केतु वास्तव में सर एवं धड़ का अलग अलग अस्तित्व है, जो की स्वर्भानु दैत्य के है, ब्रह्मा जी ने स्वरभानु को वरदान दिया था जिससे उसे ग्रह मंडल में स्थान प्राप्त हुआ। स्वरभानु के राहु एवं केतु बनने की कथा सागर मंथन की कथा का ही एक हिस्सा है।

पं अमृतेष त्रिवेदी

ज्योतिषाचार्य

आचार्य श्री पंडित अमृतेष त्रिवेदी जी द्वारा किया गया कर्मं विधान भगवान राजाधिराज महाकाल एवं कालभैरव की कृपा से यजमानो के लिए सदैव फलदाई एवं कल्याणकारी हुआ है

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    कालसर्प योग शुभ फल भी देता है

    कुण्डली में राहु एवं केतु की उपस्थिति के अनुसार व्यक्ति को कालसर्प योग (Kalsarp Dosha) लगता है. कालसर्प योग को अत्यंत अशुभ योग माना गया है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है उसका पतन होता है.यह इस योग का एक पक्ष है|

    जबकि दूसरा पक्ष यह भी है कि यह योग व्यक्ति को अपने क्षेत्र में सर्वक्षेष्ठ बनता है।

    कालसर्प योग का प्राचीन ज्योतिषीय ग्रंथों में विशेष जिक्र नहीं आया है.तकरीबन सौ वर्ष पूर्व ज्योर्तिविदों ने इस योग को ढूंढ़ा.इस योग को हर प्रकार से पीड़ादायक एवं कष्टकारी बताया गया.आज बहुत से ज्योतिषी इस योग के दुष्प्रभाव का भय दिखाकर लोगों से काफी धन खर्च कराते हैं.ग्रहों की पीड़ा से बचने के लिए लोग खुशी खुशी धन खर्च भी करते हैं.परंतु सच्चाई यह है कि जैसे शनि महाराज सदा पीड़ा दायक नहीं होते उसी प्रकार राहु एवं केतु द्वारा निर्मित कालसर्प योग हमेंशा अशुभ फल ही नहीं देते|

    अगर आपकी कुण्डली में कालसर्प योग है एवं इसके कारण आप भयभीत हैं तो इस भय को मन से निकाल दीजिए.कालसर्प योग से भयाक्रात होने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह प्रमाणित करते हैं कि इस योग ने व्यक्तियों को सफलता की ऊँचाईयों पर पहुंचाया है.कालसर्प योग से ग्रसित होने के बावजूद बुलंदियों पर पहुंचने वाले कई जाने माने नाम हैं जैसे धीरू भाई अम्बानी, सचिन तेंदुलकर, ऋषिकेश मुखर्जी, पं. जवाहरलाल नेहरू, लता मंगेशकर आदि|

    ज्योतिषशास्त्र कहता है कि राहु एवं केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब सभी ग्रह क्रमवार से इन दोनों ग्रहों के बीच आ जाते हैं तब यह योग बनता है. राहु केतु शनि के समान क्रूर ग्रह माने जाते हैं एवं शनि के समान विचार रखने वाले होते हैं.राहु जिनकी कुण्डली में अनुकूल फल देने वाला होता है उन्हें कालसर्प योग में महान उपलब्धियां हासिल होती है.जैसे शनि की साढ़े साती व्यक्ति से परिश्रम करवाता है एवं उसके अंदर की कमियों को दूर करने की प्रेरणा देता है इसी प्रकार कालसर्प व्यक्ति को जुझारू, संघर्षशील एवं साहसी बनाता है.इस योग से प्रभावित व्यक्ति अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करता है एवं निरन्तर आगे बढ़ते जाते हैं|

    कालसर्प योग में स्वराशि एवं उच्च राशि में स्थित गुरू, उच्च राशि का राहु, गजकेशरी योग, चतुर्थ केन्द्र विशेष लाभ प्रदान करने वाले होते है.अगर सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो कालसर्प योग वाले व्यक्ति असाधारण

    प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी होते हैं.हो सकता है कि आपकी कुण्डली में मौजूद कालसर्प योग आपको भी महान हस्तियों के समान ऊँचाईयों पर ले जाये अत: निराशा एवं असफलता का भय मन से निकालकर सतत कोशिश करते रहें आपको कामयाबी जरूरी मिलेगी.इस योग में वही लोग पीछे रह जाते हैं जो निराशा एवं अकर्मण्य होते हैं परिश्रमी एवं लगनशील व्यक्तियों के लिए कलसर्प योग राजयोग देने वाला होता है|

    कालसर्प योग में त्रिक भाव एवं द्वितीय एवं अष्टम में राहु की उपस्थिति होने पर व्यक्ति को विशेष परेशानियों का सामना करना होता है परंतु ज्योतिषीय उपचार से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है|

    कालसर्प दोष का निवारण

    हमारा वैदिक ज्योतिष शास्त्र ईश्वर की देन है, जो कुछ आपके प्रारब्ध में लिखा है उसे आप जप तप पूजा इत्यादि के द्वारा टाल भले ही न सके लेकिन उसका प्रभाव नगण्य(न्यून) करने तक की क्षमता रखता है, कालसर्प दोष है तो इसका निवारण भी है, भगवन भोलेनाथ के द्वार से कोई निराश होकर नहीं जाता, जिसकी कुंडली में कालसर्प योग हो वह श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।

    कालसर्प पूजा क्या है ?

    वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु एवं केतु छाया ग्रह हैं जो सदैव एक दूसरे से सातवें भाव में होते हैं.जब अन्य ग्रह क्रमशःइन दोनों ग्रहों के बीच में आ जाते हैं तब कालसर्प योग बनता है. कालसर्प योग (Kalsarp Yoga) में त्रिक भाव एवं द्वितीय एवं अष्टम में राहु की उपस्थिति होने पर व्यक्ति को विशेष परेशानियों का सामना करना होता है परंतु ज्योतिषीय उपचार से इन्हें अनुकूल बनाया जा सकता है, उज्जैन विश्वभर में तिलभर ज्यादा होने की विशेष उपलब्धि एवं महत्व प्राप्त है, एवं उज्जैन राजाधिराज महाकाल की नगरी है इसलिए यहाँ पर सच्चे मन एवं श्रद्धा से की गयी पूजा विशेष फलदायी होने के साथ साथ करने वाले एवं कराने वाले पर भगवान शिव की कृपा एवं काल भैरव द्वारा रक्षा एवं अन्य देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है, ऐसा ग्रंथों में उल्लेख है।

    कालसर्प दोष पूजा किसको करवाबी चाहिए

    जिन प्राणियों की कुंडली में 7 ग्रहो यथा सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि कुछ इस प्रकार से जमे हो की उनकी स्थिति राहू एवं केतु के बीच आ जाती है तो उस मनुस्य कुंडली में कालसर्प दोष का निर्माण होता है, एवं ऐसे मनुष्य को कालसर्प पूजा करवानी चाहिए।

     

    कालसर्प दोष पूजा क्यों करवानी चाहिए ?

    जिन व्यक्तियों के जीवन में निरंतर संघर्ष बना रहता हो, कठिन परिश्रम करने पर भी इच्छानुसार सफलता नहीं मिल पा रही हो, मन अशांत रहता हो, जीवन भर घर, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी मतलब की मुसीबते जीवन भर परेशान करती है, इसका कारण आपकी कुंडली का कालसर्प योग हो सकता है, इसलिए अपनी कुंडली किसी विद्वान ब्राह्मण को अवश्य दिखाए क्योकि कुंडली में 12 प्रकार के कालसर्प दोष पाए जाते है, यह 12 प्रकार राहू एवं केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति पर आधारित होती है, अब आपकी कुंडली में किस प्रकार का कालसर्प दोष है ये विद्वत पंडित जी ही बता सकते है, इसलिए अविलम्ब संपर्क करिये आचार्य पंडित अमृतेष त्रिवेदी जी से एवं कुंडली के सभी प्रकार के कालसर्प दोष का निदान एवं निराकरण कराये।

    हमारे दुवारा कि गयी कालसर्प दोष निवारण पूजा

    आचार्य श्री पंडित अमृतेष त्रिवेदी जी द्वारा किया गया कर्मं विधान भगवान राजाधिराज महाकाल एवं कालभैरव की कृपा से यजमानो के लिए सदैव फलदाई एवं कल्याणकारी हुआ है

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