आचार्य पंडित अम्रतेष त्रिवेदी द्वारा अवंतिकापुरी उज्जैन में श्रावण महोत्सव में कालसर्प योग शांति,पार्थिव शिवलिंग व रुद्राभिषेक अनुष्ठान

[vc_custom_heading text=”ॐ धरणीगर्भसम्भूतं विद्दुतकांतिसमप्रभं।

कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम।।” font_container=”tag:h2|text_align:center” use_theme_fonts=”yes”]

[vc_custom_heading text=”मंगल भात पूजा क्या है?” font_container=”tag:h1|font_size:32px|text_align:left|color:%23f15555|line_height:40px” use_theme_fonts=”yes” css=”%7B%22default%22%3A%7B%22color%22%3A%22%23f15555%22%2C%22font-size%22%3A%2232px%22%2C%22line-height%22%3A%2240px%22%7D%7D”]

मंगल मेष एवं वृश्चिक राशि के स्वामी हैं, इसलिए जिन व्यक्तिओ को अधिक क्रोध आता है या मन ज्यादा अशांत रहता है उसका कारण मंगल ग्रह की उग्रता माना जाता एवं यह मंगल भात पूजा कुंडली में विद्धमान मंगल ग्रह की उग्रता को कम करने के लिए की जाती है, यह पूजा उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर में नित्य होती है, जिसका पुण्य लाभ समस्त भक्तजन प्राप्त करते है।

मंगल भात पूजा किसके द्वारा करवाई जानी चाहिए?

मंगल भात पूजा पूरी तरह से आपके जीवन से जुडी हुयी है इसलिए इस पूजा को विशिस्ट, सात्विक एवं विद्वान ब्राह्मण द्वारा गंभीरता पूर्वक करवानी चाहिए आचार्य पंडित अमृतेष त्रिवेदी जी को इस पूजा का महत्त्व एवं विधि भली भांति से ज्ञात है एवं अभी तक इनके द्वारा कराई गई पूजा राजाधिराज महाकाल की कृपा से सदैव सफल हुई है।

पं अमृतेष त्रिवेदी

ज्योतिषाचार्य

आचार्य श्री पंडित अमृतेष त्रिवेदी जी द्वारा किया गया कर्मं विधान भगवान राजाधिराज महाकाल एवं कालभैरव की कृपा से यजमानो के लिए सदैव फलदाई एवं कल्याणकारी हुआ है

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     मंगल भात पूजा क्यों करवानी चाहिए ?

    लग्ने व्यये च पाताले जामित्रेचाष्टमे कुजे ।
    कन्याभर्तुविनाशाय भर्तुविनश्यते ।।

    मंत्रार्थ – लग्न चतुर्थ सप्तम अष्टम द्वादश भाव में मंगल कन्या की कुंडली में हो तो वर के लिए अशुभ होता हे इसलिए मंगल दोष का निवारण अवश्य करवाना चाहिए ।

    कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है उसी को ज्योतिष की भाषा में मंगल दोष कहते है, मंगल दोष कुंडली के किसी भी घर में स्थित अशुभ मंगल के द्वारा बनाए जाने वाले दोष को कहते हैं, जो कुंडली में अपनी स्थिति एवं बल के चलते जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, तो वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ अवश्य करवाए, जैसा की उज्जैन को पुराणों में मंगल की जननी कहा जाता है इस लिए मंगल दोष को निवारण के लिए मंगल भात पूजा को उज्जैन में ही करवाने से अभीस्ट पुण्य एवं फल प्राप्त होता है.

    मंगल भात पूजा पूरी तरह से आपके जीवन से जुडी हुयी है इसलिए इस पूजा को विशिस्ट, सात्विक एवं विद्वान ब्राह्मण द्वारा गंभीरता पूर्वक करवानी चाहिए आचार्य पंडित अमृतेष त्रिवेदी जी को इस पूजा का महत्त्व एवं विधि भली भांति से ज्ञात है एवं अभी तक इनके द्वारा कराई गई पूजा राजाधिराज महाकाल की कृपा से सदैव सफल हुई है।

    मंगल भात पूजा की कथा

    शास्त्रानुसार मंगल को भगवान शिव के शरीर से क्रोध रूपी पसीने से उत्पन्न माना जाता है, इसकी कथा इस प्रकार से है, भगवान शिव वरदान देने में बहुत ही उदार है, जिसने जो माँगा उसे वो दे दिया लेकिन जब कोई उनके दिए वरदान का दुरूपयोग करता है प्राणिओ के कल्याण के लिए भगवान् शिव स्वयं उसका संहार भी करते है, स्कन्ध पुराण के अनुसार उज्जैन नगरी में अंधकासुर नामक दैत्य ने भगवान् शिव की अडिग तपस्या की एवं ये वरदान प्राप्त किया कि मेरा रक्त भूमि पर गिरे तो मेरे जैसे ही दैत्य उत्पन्न हों जाए। भगवान शिव तो है ही अवढरदानी दे दिया वरदान, परन्तु इस वरदान से अंधकासुर ने पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मचा दी..सभी देवता, ऋषि- मुनियो एवं मनुष्यो का वध करना शुरू कर दिया…सभी देवगण, ऋषि-मुनि एवं मनुष्य भगवान् शिव के पास गए एवं सभी ने ये प्रार्थना की- आप ने अंधकासुर को जो वरदान दिया है, उसका निवारण करे, इसके बाद भगवान शिव जी ने स्वयं अंधकासुर से युद्ध करने एवं उसका वध करने का निर्णय लिया । भगवान् शिव एवं अंधकासुर के बीच आकाश में भीषण युद्ध कई वर्षों तक चलता रहा । युद्ध करते समय भगवान् शिव के ललाट से पसीने कि एक बून्द भूमि के गर्भ पर गिरी, वह बून्द पृथ्वी पर मंगलनाथ की भूमि पर गिरी जिससे भूमि के गर्भ से शिव पिंडी की उत्पत्ति हुई एवं इसी को बाद में मंगलनाथ के नाम से प्रसिद्दि प्राप्त हुयी। युद्ध के समय भगवान् शिव का त्रिसूल अंधकासुर को लगा, तब जो रक्त की बुँदे आकाश में से भूमि के गर्भ पर शिव पुत्र भगवान् मंगल पर गिरने लगी, तो भगवान् मंगल अंगार स्वरूप के

    हो गए । अंगार स्वरूप के होने से रक्त की बूँदें भस्म हो गयीं एवं भगवान् शिव के द्वारा अंधकासुर का वध हो गया । भगवान् शिव मंगलनाथ से प्रसन्न होकर 21 विभागों के अधिपति एवं नवग्रहों में से एक गृह की उपाधि दी । शिवपुत्र मंगल उग्र अंगारक स्वभाव के हो गए.. तब ब्रम्हाजी, ऋषि-मुनियो, देवताओ एवं मनुष्यों ने सर्व प्रथम मंगल की उग्रता की शांति के लिए दही एवं भात का लेपन किया, दही एवं भात दोनो ही पदार्थ ठन्डे होते है, जिससे मंगल ग्रह की उग्रता की शांति होती हैं। इसी कारण जिन प्राणिओ की कुंडली में मंगल ग्रह अतिउग्र होता है उनको मंगल भात पूजा करवानी चाहिए, मंगल दोष का उज्जैन में पूजन करवाने से यह अत्यंत लाभदायी एवं शुभ फलदायी होता है। इसी कारण मंगल गृह को अंगारक एवं कुजनाम के नाम से भी जाना जाता है ।

    हमारे दुवारा कि गयी मंगल भात पूजा

    आचार्य श्री पंडित अमृतेष त्रिवेदी जी द्वारा किया गया कर्मं विधान भगवान राजाधिराज महाकाल एवं कालभैरव की कृपा से यजमानो के लिए सदैव फलदाई एवं कल्याणकारी हुआ है

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