आचार्य पंडित अम्रतेष त्रिवेदी द्वारा अवंतिकापुरी उज्जैन में श्रावण महोत्सव में कालसर्प योग शांति,पार्थिव शिवलिंग व रुद्राभिषेक अनुष्ठान

श्री कालभैरव मंदिर

अष्ट भैरवों में प्रमुख श्री कालभैरव का यह मंदिर अत्यंत प्राचीन और चमत्कारिक है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भैरव प्रतिमा के मुंह में छिद्र न होते हुए भी यह प्रतिमा मदिरापान करती है। जब पुजारी द्वारा मद्य पात्र भगवान भैरवजी के मुंह से लगाया जाता है, तो सबके देखते ही देखते यह पात्र स्वत: ही खाली हो जाता है।

भैरवगढ़ के दक्षिण में तथा शिप्रा नदी के तट पर श्री कालभैरव का यह चमत्कारिक मंदिर स्थित है। कालभैरव के दक्षिण में करभेश्वर महादेव एवं विक्रांत भैरव के स्थान हैं। स्कंद पुराण में इसी कालभैरव मंदिर का अवंतिका खंड में वर्णन मिलता है। इनके नाम से ही यह क्षेत्र भैरवगढ़ कहलाता है। राजा भद्रसेन द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। उसके भग्न होने पर राजा जयसिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। इस मंदिर के प्रांगण में स्थित एक संकरी और गहरी गुफा में पाताल भैरवी का मंदिर है। यह स्‍थान तांत्रिक साधना हेतु विशेष महत्वपूर्ण है।

श्री मंगलनाथ मंदिर

श्री मंगलनाथ का मंदिर एक महत्वपूर्ण और प्राचीन मंदिर है। मत्स्य पुराण में मंगल ग्रह को भू‍‍मि-पुत्र कहा गया है। पौराणिक मान्यता भी यही है कि मंगल ग्रह की जन्मभूमि भी यहीं है। इनकी पूजा एवं आराधना का अपना विशेष महत्व है। मंगल ग्रह की शांति, शिव कृपा, ऋणमुक्ति तथा धन प्राप्ति हेतु श्री मंगलनाथजी की प्राय: उपासना की जाती है। यहां पर भात-पूजा तथा रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व है। मंगलवार के दिन यहां पर दर्शनार्थियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है। ज्योतिष एवं खगोल‍ विज्ञान के दृष्टिकोण से यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह मंदिर एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है। इसके प्रांगण में पृथ्वी देवी की अत्यंत प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। शक्तिस्वरूपा होने के कारण इन्हें सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। यहां से थोड़ी दूरी पर गंगा घाट है। यह वही स्थान है, जहां पर कभी भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरु महर्षि सांदीपनि की गंगा स्नान करने की अभिलाषा को पूर्ण करने हेतु श्री गंगाजी को प्रकट किया था।

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