आचार्य पंडित अम्रतेष त्रिवेदी द्वारा अवंतिकापुरी उज्जैन में श्रावण महोत्सव में कालसर्प योग शांति,पार्थिव शिवलिंग व रुद्राभिषेक अनुष्ठान

श्री गढ़कालिका देवी मंदिर

गढ़कालिका देवी को महाकवि कालिदास की आराध्य देवी माना जाता है। उनकी अनुकंपा से ही अल्पज्ञ का‍लिदास को विद्वता प्राप्त हुई थी। तांत्रिक दृष्टिकोण से यह एक सिद्धपीठ है। त्रिपुरा माहात्म्य के अनुसार देश के 12 प्रमुख शक्तिपीठों में यह 6ठा स्थान इस मंदिर का ही है।
यह मंदिर जिस स्थान पर स्थित है, वहां कभी प्राचीन अवन्तिका नगरी बसी हुई थी। गढ़ पर स्थित होने से ये गढ़कालिका कहलाईं।

उक्त मंदिर में कालिकाजी के एक तरफ श्री महालक्ष्मीजी हैं और दूसरी तरफ श्री महासरस्वतीजी की प्रतिमा स्थित है। यहां से कुछ दूरी पर ही शिप्रा नदी है, वहीं पर सतियों का स्थान भी है। उसके सामने ओखर श्मशान घाट है। पौराणिक दृष्टिकोण से गढ़कालिका मंदिर का विशेष महत्व है। यहां पर श्री दुर्गाशप्तशती का पाठ करने से आध्यात्मिक प्रगति होती है। यहां न‍वरात्रि पर्व पर विशेष आयोजन होते हैं।

श्री चिंतामण गणेश मंदिर

यह एक प्राचीन मंदिर है। इस परमारकालीन मंदिर का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था। यहां पर श्री चिंतामणि गणेश के साथ ही इच्छापूर्ण और चिंताहरण गणेशजी की प्रतिमाएं हैं।

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में ली गई मनौतियां अवश्य ही पूर्ण होती हैं। यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर नगर से लगभग 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

श्री नवग्रह मंदिर (शनि मंदिर)

उज्जैन शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर इंदौर-उज्जैन मार्ग पर त्रिवेणी संगम तीर्थ स्थित है। यहां पर नवग्रहों का अत्यंत प्राचीन मंदिर है। स्कंद पुराण में इसे शनिदेव के महत्वपूर्ण स्थान के रूप में मान्यता दी गई है। प्रति शनैश्चरी अमावस्या को यहां पर असंख्‍य श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं।

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